घघसरा-गोरखपुर (यूएसएन)। बच्चे का प्रथम गुरु उसकी मां होती है । वह जैसा संस्कार बच्चे को देती है, उसी प्रकार वह बन जाता है । धुंधकारी की मां स्यं दुष्ट स्वभाव की महिला थी, इस लिए उसका बुरा प्रभाव धुंधकारी पर पूरी तरह पड़ा था । यह कथा सर्वविदित हैं ।
उक्त बातें- अयोध्या धाम से पधारे पंडित आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने कही । वह विकास खण्ड पाली के ग्राम पंचायत पनिका में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को कथा रसपान करा रहे थे । उन्होंने ने कथा विस्तार करते हुए कहा कि- प्राचीन काल में तुंगभद्रा नदी के तट पर आत्मदेव नाम का एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था । वह बहुत सज्जन और विद्वान था । परंतु उसकी पत्नी बहुत दुष्ट एवं स्वछंद विचार वाली झगड़ालू महिला थी ।
कालांतर में आत्मदेव के दो पुत्र हुए-एक का नाम धुंधकारी और दूसरे का नाम गोकर्ण था । गोकर्ण पिता की छत्रछाया में पले-बढ़े और आगे चलकर वह परम विद्वान व हरि भक्त हुए । वहीं धुंधकारी अपनी मां धुंधली के लाड-प्यार में पूरी तरह बिगड़ गया और आगे चलकर बहुत बड़ा दुराचारी हुआ ।
कथा व्यास ने कहा कि-ख्याति तो दोनों ने पाई, एक सदाचारी हुआ तो, दूसरा दुराचारी ।
धुंधकारी हिंसा व व्यविचार में लिप्त हो कर घर की सारी संपत्ति बर्बाद कर दिया । उसको पाप कृत्य से दुःखी हो कर पिता आत्मदेव तो संतों की संगति में चलें गए । परंतु मां धुंधली को वह पैसे के लिए मारने-पीटने लगा ।एक दिन रात्रि को घर छोड़कर भागते समय अंधकूप में गिर कर मर गई ।
उक्त अवसर पर-मुख्य यजमान साधिका पाण्डेय,रामप्रकाश,गोदर, उर्मिल मिश्रा, शकुंतला देवी,रेखा गुप्ता,किरन गुप्ता, दिनेश, उर्मिल गुप्ता, खजाने पाण्डेय समेत कई लोग मौजूद थे ।